मैं हिंदू नहीं
मुसलमान नहीं
सिख या ईसाई नहीं
बौद्ध या जैन नहीं
सिर्फ एक बन्दा हूँ
अपने आप में परिपूर्ण
देह वालों की नजरों में
धर्म वाला हूँ
जाति वाला हूँ
जीव हूँ
पर
मेरा सच
अटल सत्य है
जिसे लोग कहते हैं
ईश्वर या अल्लाह
उसका ही अश्क हूँ
स्वयं वही हूँ
कवि हूँ
कविता भी हूँ
शब्द हूँ
रचयिता भी हूँ
सृजन में आनंदित
आनंद का मूल हूँ
जिसे कहते हैं
सर्वशक्तिमान
हाजरा-हुजूर
उनसे परे नहीं मैं
वही हूँ
सृजक हूँ
अनेक रूपों में भासता
हूँ
कण-कण में व्यापता हूँ
लड़ता हूँ लड़ाता हूँ
प्रेम से रहता हूँ
प्रेम करना सिखाता हूँ
बंदगी करता हूँ
बन्दा हूँ
बन्दे का मालिक भी
मैं ही मैं हूँ
कृष्ण हूँ
अर्जुन भी मैं ही हूँ
मेरे नाम अनेक
रूप अनेक
पर मैं
सबमें एक का एक
मेरे सिवा दूजा नहीं
स्वयं मैं ही
अंतरिक्ष रूपी मैदान बन
पृथ्वी, सूरज, चाँद,
तारे बन
ग्रह और नक्षत्र
उजियारे बन
जड़ और चेतन बन
खेलता हूँ अपने रंगमंच
पर
खेल सृजन और संहार का
अपनी माया से
अक्सर मोहित हो जाता
हूँ
अनेक रूपों में एक होते
हुए
कवि, कविता और श्रोता
सृजक, सृष्टि और दृष्टा
पृथक-पृथक नजर आता हूँ
मैं अलबेला हूँ
बुलाओ चाहे जिस नाम से
मैं तो एक ही हूँ |
(c) हेमंत कुमार दूबे
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