> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : अपना घर सम्हालो भाई

रविवार, 23 सितंबर 2012

अपना घर सम्हालो भाई




टोपी पहने छत पर बंदर 
नाच रहा तेरी रोटी लेकर
उसके संग है एक बंदरिया 
सात समंदर पार कलंदर 

ठुमक ठुमक कर नाच दिखाता
बंदरिया पर प्यार जताता 
एक इशारा जो वह कर दे 
सिर के बल खड़ा हो जाता

अपना घर सम्हालो भाई
बन्दर-बंदरिया है उत्पाती
देख नाच मोहित न होना
ये है बड़े विश्वासघाती 

गाँधीजी का नहीं ये बंदर
नहीं उनकी ये बंदरिया 
करेंगे घर में तोड़ फोड 
ले जायेंगे तेरी चदरिया

बूझ गए तुम तो अच्छा है
नहीं तो दिमाग अभी बच्चा है
शोर मचाओ सबको बुलाओ
नहीं तो नुक्सान अवश्य संभव है |

(C)
हेमंत कुमार दूबे

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