लिखना पढ़ना अच्छा लगता है
पर कुछ भी लिखा नहीं
कई महीने गुजर गए हैं
फिर भी लेखनी उठी नहीं
शरद ऋतु हो गई शेष
वसंत का हो गया प्रवेश
आज कवि के हृदयांगन में
स्फुरित हुए हैं शब्द विशेष
नभ में चंद्र सूर्य संगम
प्रातः अरूण प्रभा गहराई है
शीतल मंद पवन बहती स्वछंद
कुसुमित बगिया में तरुणाई है
शंख घड़ियाल कर रहे नाद
मंत्रोच्चार आरती ध्वनि छाई है
पुष्प हस्त में लिए अलि
पीली चुनर उसकी लहराई है
जय घोष कर रहे भक्त
घंटा ध्वनि सुनाई दी है
सब पूर्ण काम हो जायेंगे
अव्यक्त प्रतीति मन आई है।