दंगल देखने के लिए
उत्सुक
नारे लगाती हुई जनता
जुटी है अपने-अपने
मनसूबे से
मैदान के चारों तरफ
|
पहलवान अपने तन पर
लज्जा को ढकने के
लिए
पहने हैं सिर्फ
लंगोट,
बाकी अंग
वस्त्रविहीन |
ये नेताओं से अच्छे
हैं,
जो खड़े चुनावी दंगल
में,
फिरते सड़कों पर,
मोहल्ले की गलियों
में,
उछालते कीचड विरोधियों
पर,
उड़ाते धूल
चार-पहियों से
जनता की आँखों में |
नेताओं के तन पर
सफ़ेद कपड़े होते हैं,
पर
दिल से होते है नंगे,
काले, भेड़ियों जैसे|
अच्छा व्यक्ति भी
संग इनके,
बनता है धूर्त
भेड़िया,
औरों का हक खाने
वाला,
पत्तल में छेद करने
वाला|
नेता और उनके चमचे,
जब आ जाते हैं,
जनता बोलती नहीं,
सिर्फ सुनती है, और
देती है अपना
निर्णय,
चुनावी दंगल में वोट
ड़ालकर |
(c) हेमंत कुमार दुबे