सपने में मकान, वाहन
आदि जो दीखता है
मन ही अनेक रूप धरता,
सच-सा भासता है
जागने पर नींद से वह
संसार उजड़ता है
स्वप्न-जगत तुझमें
ही लीन हो जाता है
जान ले, जैसे रैन का
जहान छुट गया है
घटनाएँ, लोग, सब
कारोबार मिट गया है
वैसे ही सपना खुली
आँख तू देखता है
बदलता जो पल-पल
उसमें ही रमता है
कूर-कपट करके जो तू
मन को रिझाएगा
जोड़ेगा एक-एक पाई
फिर भी दुःख पायेगा
कमाई तेरी कोई
दूसरा ही खायेगा, उडाएगा
अशांति होगी, लाख
चौरासी चक्कर खायेगा
घर, परिवार,
दुःख-रूप संसार, सब असार है
माया में व्यवहार
सब, भ्रम का विस्तार है
भज तू राम को, जो इस
संसार का आधार है
सुख-शान्ति का दाता,
जो प्रेम सिन्धु अपार है
गरीब दुखिजनों का
नित्य उपकार कर
सब में बसा रब, हर
धर्म का लिहाज कर
मन में विचार, तू
सत्य का व्यवहार कर
एक है
आत्मा-परमात्मा, तू भेद न कर |
© हेमंत कुमार दुबे