> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : किस घर कैसे जाएँ?

सोमवार, 3 सितंबर 2012

किस घर कैसे जाएँ?




वहाँ जहां पर प्यार नहीं हो,
कैसे फूल बरसाएं,
दुःख के कांटे चुभते हो तो,
क्यों कर प्रीत निभाएं ?

चोट लगती हर वचन से,
नैनों जल बरसाएं,
मन उदास, तन शिथिल
पैरों को कैसे समझाएं?

सब अपने अपनी मस्ती में,
जब हमारी सुध बिसराएँ,
झूठे रिश्ते नाते हैं सब,
किस घर कैसे जाएँ?

(c) हेमंत कुमार दूबे

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें