वहाँ जहां पर प्यार नहीं हो,
कैसे फूल बरसाएं,
दुःख के कांटे चुभते हो तो,
क्यों कर प्रीत निभाएं ?
चोट लगती हर वचन से,
नैनों जल बरसाएं,
मन उदास, तन शिथिल
पैरों को कैसे समझाएं?
सब अपने अपनी मस्ती में,
जब हमारी सुध बिसराएँ,
झूठे रिश्ते नाते हैं सब,
किस घर कैसे जाएँ?
(c) हेमंत कुमार दूबे
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