“प्रकृति
के पञ्च तत्व
जिनके
मेल से
बनी
मेरी काया
और
मेरा अविर्भाव हुआ
एक
संकल्प से
एक
बीज से
जिसने
सड़ते-गलते
सूखी
पत्तियों के कचरे
और
मल से पाया
जीवन
पोषण का रस
अंकुरित
हुआ
हवा
से प्राण पाकर
मुखरित
हुआ
अपनी
माँ के आँचल में
माँ!
मेरी
जननी
धरती
ने मुझे दिया
प्यार
शिक्षा
कोमलता
सौम्यता
सहन
शक्ति
और
विकसित किया
मुझे
मेरे
मन को
उसकी
खूबियों को
संजाया-संवारा
कली
रूप में
स्थापित
किया
मेरे
हृदय में
हवा
मेरी प्राणवायु
मेरी
संगिनी ने
झुलाया
अपने पालने में
सहलाया
मेरे रोम-रोम को
और
खेली अठखेलियाँ
चाँद
की चांदनी ने
हौले
से स्पर्श किया
गुदगुदाया
मेरे मन को
रात
की नीरवता में
और
उसकी वीणा की स्वरलहरी में
मिला
मेरे मन को
प्रेम
सन्देश
लोरियाँ
मैंने हवा से सुनी
और
सोया उसकी थपकियाँ पाकर
भोर
की लालिमा में
देवेश
की प्रथम किरणों ने
मुझे
जगाया
ज्ञान
दिया
आलोकित
किया
और
खिल
उठा मेरा मन
प्रसन्न
|”
पुष्प
की जबानी सुन
लगा
मुझे
मानो
मेरा ही था
यह
जीवन दर्पण
लोग
मेरे
अपने
समझें
या न समझें
पुष्प
यह समझता है
उसमें
व मुझमें
समरसता
है
एक
साम्य |
© हेमंत कुमार दूबे