> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : पता है मुझको दोस्त

गुरुवार, 4 अक्टूबर 2012

पता है मुझको दोस्त



मेरे जज्बातों से न खेल दोस्त 
आँखों में नमी देख ले 
इतना न उड़ हवा में 
खिसक जायेगी जमीं पांवों तले

कभी मेरे सुख दुःख का साथी था
आज गैरों के संग है 
क्या हुआ तेरे दिल को 
सोच तेरी क्यों तंग है

देख कर मेरी हालत 
आज तुझको जो हंसना आया
हँसेंगे तुझ पर वे सब
जिन्होंने तुझे भरमाया 

न खेल वह खेल 
जिसे खेलना आता नहीं
पता है मुझको दोस्त
तुझे हारना सुहाता नहीं

जो साथ खड़े तेरे
चंद दिनों के साथी हैं
यारी अपनी वर्षों से
हम बचपन के साथी हैं 

डर बर्बादी का मुझको नहीं
डरता हूँ सिर्फ तेरे लिए
दर्द जो दे रहा मुझको
बनेगा कल शूल तेरे लिए 

नेकी का बदला मिलता है
बदी भी रंग दिखलाती है 
रहम जो हो अपने पास में
तो रहमत भी मिल जाती है |

(c) हेमंत कुमार दूबे

1 टिप्पणी:

  1. नेकी का बदला मिलता है
    बदी भी रंग दिखलाती है
    रहम जो हो अपने पास में
    तो रहमत भी मिल जाती है |

    Khoob Kaha.....

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