बुतों को पूजना चाहो तो भले पूजो मेरे भाई
मेरा तो धर्म इंसानियत यह अव्यक्त कहता है।
मेरा तो धर्म इंसानियत यह अव्यक्त कहता है।
© हेमंत कुमार दुबे 'अव्यक्त'
इन पंक्तियों के साथ ही मैंने अव्यक्त उपनाम चुना है आगे की कविताओं के लिए लिये।
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कवितायें जो मैं लिखता हूँ / मेरे जीवन की हैं कहानी / जो देखा-सुना इस संसार में / तस्वीरें कुछ नई, कुछ पुरानी // आएँ पढ़ें मेरी जीवन गाथा / जिसमें मैं और मेरा प्यार / आत्म-शांति अनुभूति की बातें / बेताब पाने को आपका दुलार...//
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