> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : दिसंबर 2015

रविवार, 20 दिसंबर 2015

मेरा धर्म

बुतों को पूजना चाहो तो भले पूजो मेरे भाई
मेरा तो धर्म इंसानियत यह अव्यक्त कहता है।
© हेमंत कुमार दुबे 'अव्यक्त'
इन पंक्तियों के साथ ही मैंने अव्यक्त उपनाम चुना है आगे की कविताओं के लिए लिये।

ब्रह्म की बात

ब्रह्मज्ञानी का शिष्य हूँ,
ब्रह्म में रमण करता हूँ,
ब्राह्मण कहलाता हूँ
मैं ब्रह्म का अनन्य अंश हूँ
अव्यक्त नाम मेरा
न कोई वैरी मेरा
न कोई मित्र मेरा
न ये चोला मेरा
चहुँओर व्याप्त ब्रह्म है
उसके नाटक का अंश है
भ्रम का पर्दा हटाना है
यही ब्रह्म का आदेश है |

- हेमंत कुमार दुबे 'अव्यक्त'

शनिवार, 19 दिसंबर 2015

'अव्यक्त' का अनुरोध

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अव्यक्त का संदेश

सतगुरू बापू से जो सिखा वही संदेश लिखा है
चलता संसार एक मालिक से जिसका नाम लिखा है
जो हर क्षण रहता है सबके दिलों में प्यार बनकर
उस अगम अज अगोचर का अव्यक्त नाम लिखा है
रास्ते पर किसी भी चलो धर्म का नाम लेकर
मंजिल एक सबकी ग्रंथों में अलग नाम लिखा है
मजहबी बंदों के नाम यही एक पैगाम लिखा है
हेमंत अनाम इस जहाँ में अव्यक्त नाम लिखा है।
© हेमंत कुमार दुबे 'अव्यक्त'