देश के उन शासकों को कहूँगा
जिनने बेच दी है आत्मा अपनी
अब धृतराष्ट्र बने बैठे हैं
आमादा है देश बेचने को
ओट ले विदेशी निवेश का
और जो कहते हैं जनता से
पैसे पेड़ पर नहीं लगते
दशकों तक किया तुमने शासन
लूट तुम्हारी अब भी बाकी है
सींचा नहीं धरा को तुमने
पौध रोपना भी बाकी है
उम्र बहुत हो चुकी मगर
भूख पैसे की बाकी है
आँखों पर चश्मा चढ़ा
मगर रतौंधी काफी है
दीखता नहीं स्वार्थी तुम्हें
आगे हरियाली काफी है
लगाओ, सींचो पेड़ अगर तुम
फल रूपी पैसे काफी हैं ..
तुममें नहीं मगर हममें
देश-प्रेम अभी काफी है
अब भी सुधर जाओ वर्ना
जन दरबार में नहीं माफ़ी है ..
(c) हेमंत कुमार दूबे
Samsamyik, Steek Rachna ....
जवाब देंहटाएंदेश के उन शासकों को कहूँगा
जवाब देंहटाएंजिनने बेच दी है आत्मा अपनी
अब धृतराष्ट्र बने बैठे हैं
आमदा(आमादा ) है देश बेचने को.........आमादा
ओट ले विदेशी निवेश का
और जो कहते हैं जनता से
पैसे पेड़ पर नहीं लगते
दशकों तक किया तुमने शासन
लूट तुम्हारी अब भी बाकी है
सींचा नहीं धारा (धरा )को तुमने.............धरा
पौध रोपना भी बाकी है
उम्र बहुत हो चुकी मगर
भूख पैसे की बाकी है
आँखों पर चश्मा चढ़ा
मगर रतौंधी काफी है
दीखता नहीं स्वार्थी तुम्हें
आगे हरियाली काफी है
लगाओ, सींचो पेड़ अगर तुम
फल रूपी पैसे काफी हैं ..
तुममे(तुममें ) नहीं मगर हममें..........तुममें
देश-प्रेम अभी काफी है
अब भी सुधर जाओ वर्ना
जन दरबार में नहीं माफ़ी है ..
(c) हेमंत कुमार दूबे
बहुत सशक्त रचना है उस दौर की जब ईस्ट इंडिया कम्पनी की नव -अवतार की दलाई करने वाले बहुत से लोग हिन्दुस्तान में अब भी वही कर रहें हैं जो तब करते थे .
त्रुटियों का सुधार कर दिया गया है| बताने के लिए धन्यवाद|
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