तुम से बिछड़ कर
उठती है जो
मेरे कलेजे को
चीरती है जो
तिल-तिल तडपाती है
बता दो हेमंत
इस विरह की
संयम की परीक्षा में
क्या करूँ?
इस हूक से
जो उठती है
बार - बार सीने में
मैं क्या कहूँ?
उठती है जो
मेरे कलेजे को
चीरती है जो
तिल-तिल तडपाती है
बता दो हेमंत
इस विरह की
संयम की परीक्षा में
क्या करूँ?
इस हूक से
जो उठती है
बार - बार सीने में
मैं क्या कहूँ?
© हेमंत कुमार दुबे
12.11.2015
12.11.2015