मैं,
अयोध्या नरेश राम,
तुमसे कहता हूँ,
तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर,
क्यों नहीं रखा नगर में,
अपनी गर्भिणी सीता को,
क्यों भेजा वन में ?
जंगल में ही तो ईश्वर प्राप्त रहते है,
और फिर वाल्मीकि का संग,
उनकी अमूल्य शिक्षा,
क्या मिल पाती तुम्हें अवध में?
लव-कुश,
अगर होते तुम अयोध्या में,
क्या तुम मुझ जैसे बन पाते,
फिर माँ तुम्हारी,
मेरी जानकी,
धरती पुत्री,
अपनों के बीच ही तो रही,
दूर नहीं थी मुझ से,
वन में रह कर भी,
यह तो कष्ट सहा,
केवल तुम्हारे लिए,
तुम्हें निखारने के लिए|
(c) हेमंत कुमार दुबे