लगते हर रोज मेले ,
झांकते पत्थरों से ,
अक्षरों से ,
एक - एक वीर बहादुर |
बच्चों की किलकारी ,
जुगल जोडों की उन्मुक्त हंसी ,
दोस्तों के ठहाके ,
कैमरे के अन्दर बंद होते ,
खुशिओं के स्मृति चिन्ह |
इनमें ही कहीं होगा ,
उनका भी परिवार ,
नाती -पोते,
हँसते-खेलते -
औरों की तरह ,
लेते साँस,
हवा के इन झोंको में ,
मानते आजादी के पर्व ,
इंडिया गेट पर |
(C) हेमंत कुमार दुबे
itni sukshmta kam hoti hai, bas mele lagte jate hain
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