> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : तस्वीर

शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

तस्वीर

अपना पर्स खोलो...
मैं जानता हूँ उसके अन्दर
एक छोटा सा शीशा है,
जिसमें बड़ी साफ  तस्वीर
आती है नज़र |

देखो -
क्या यह वही है
जिसे तुम जानती हो
पहचानती हो ?

यदि नहीं है वह तस्वीर -
आँखों को मींचो,
होंठों को हल्का फैलाओ,
माथे के बल को
थोडा आराम दो,
बिंदी को थोडा
सीधा कर दो |

माना
अभी मौसम ठीक नहीं है
हवाएं गर्म हैं !
आँधियों से मत डरो,
थोडा इंतजार करो |

इंतजार की घड़ियाँ
परीक्षा की होती हैं,
छोटी, पर लम्बी दिखाती हैं,
असह्य होती हैं |

तूफान में तेजी होती है,
हिला देता है,
डरा देता है,
पर टिकता नहीं देर तक |

अपने को पहचानो
थोडा याद करो -
कई तूफान आये और गए
नहीं बिगाड़ पाए कुछ भी |
तुम निडर हो,
धैर्यवान हो,
बुद्धि-विवेक से परिपूर्ण |

हवाएं कितनी भी तेज़ हों
तुम्हें डिगा नहीं पाएंगी,
तिल भर खिसका नहीं पाएंगी,
तुम गिरिजा की मानस पुत्री |

फिर मैं...
हमेशा साथ तुम्हारे,
जैसे अर्जुन के रथ पर
कुरुक्षेत्र के समरांगन में |

चाहता हूँ देखना
विकट परिस्थितियों में
वही तुम्हारी तस्वीर -
मुस्कुराती, शांत,
साहस व धैर्य से परिपूर्ण
जिसे देखना चाहती थी
तुम जाने कब से,
जो अब देख रही तुम
अपने छोटे दर्पण में |
(c) हेमंत कुमार दुबे

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