आसमान से जब भी देखता हूँ
हरदम
वही दिखती हैं
काले लिबासों में
काली किस्मत वाली
भूरे-स्याह
सीमेंट-कंकरीट के
जंगलों में,
जिसे आज का मानव
शहर कहता है,
पालीथिनो से पटे,
काले नालों के किनारे,
रेल की पटरिओं के साथ,
समानान्तर,
शोक मनाती हुई
मरी हुई मानवता का,
और फिर भी
संभालती हुई
शहर की बची-खुची
धड़कनों को -
झुग्गियां |
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