> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : झुग्गियां

सोमवार, 11 अप्रैल 2011

झुग्गियां


आसमान से जब भी देखता हूँ
हरदम
वही दिखती हैं
काले लिबासों में
काली किस्मत वाली
भूरे-स्याह
सीमेंट-कंकरीट के
जंगलों में,
जिसे आज का मानव
शहर कहता है,
पालीथिनो से पटे,
काले नालों के किनारे,

रेल की पटरिओं के साथ, 
समानान्तर,
शोक मनाती हुई 
मरी हुई मानवता का,
और फिर भी 
संभालती हुई
शहर की बची-खुची 
धड़कनों को - 
झुग्गियां |

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