बेटा क्या, क्यों और किससे पढ़ेगा ,
सब तय हो जाता है ,
जेबों में जब न हो लक्ष्मी ,
सब गुड़-गोबर हो जाता है |
बूढों की कौन करेगा सेवा ,
इस पर होड़ मच जाती है ,
पितृदेव कहलाते पापा ,
जब मोटी पेंसन आती है |
जन्मदिन पर बच्चों के ,
दादा जब देते नहीं उपहार ,
बेटा-बहू होते नाराज़
भूलते माँ -बाप के उपकार |
भाई-भाई को तोड़ रहा
दोस्त बन जाते अनजान ,
बेमानी बने सब रिश्ते-नाते
पैसा बन गया है शैतान |
(C) सर्वाधिकार सुरक्षित - हेमंत कुमार दुबे
स्वार्थ की भीड़ में रिश्तों की पहचान गुम हो गई है
जवाब देंहटाएंमहानगरों में तो बस लम्बी गाड़ियां हैं
चमचमाती विज्ञापन सी नकली मुस्कान ...
सेवा ?
अमां तुम किस वतन के हो कहाँ की बात करते हो ?
क्या खूब ! धन्यवाद !!
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