> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : मत कहो कविता शेष हो गई

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

मत कहो कविता शेष हो गई

दर्द तुम्हारा मेरा भी है
क्योंकि हमारी तलाश
कागज के पन्नों की है
जिन पर भाव हृदय के
अंकित होते है |


अभी प्राण बाकी हैं
कागजों पर ना सही
इन्टरनेट पर
जिन्दा है अभी भी
रूपांतरण हो गया है
जगह बदल गई है
तभी तो
तुमने लिखी मैंने पढ़ी है|

मत कहो,
मत कहो कविता शेष हो गई
दर्द होता है सीने में|


(C) सर्वाधिकार सुरक्षित: हेमंत कुमार दुबे

1 टिप्पणी:

  1. मत कहो,
    मत कहो कविता शेष हो गई
    दर्द होता है सीने में... शब्दों का जो अनमोल रिश्ता है जीवित उसे तो शेष ना करो... हाँ दर्द होता है सीने में

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