> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : सपूत

बुधवार, 20 अप्रैल 2011

सपूत


बारिश की बूंदों ने
अभिषिक्त किया,
तन-मन तृप्त किया,
गर्मी से मिली राहत |

वृक्षों के पत्तों को

छूकर बहती हवा,
कहती हवा,
तुम धन्य धरा के
रक्षक - सपूत |



(C) हेमंत कुमार दुबे

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