नहीं चाहता लिखना,
कोई कहानी,
या कविता,
क्योंकि -
दोनों ही उपजेंगे
दिलो-दिमाग से,
स्वप्नवत |
नहीं चाहता देखना
कोई नई जगह,
नया दृष्य,
क्योंकि -
जो शाश्वत नहीं
उसे क्या देखना |
नहीं करना चाहता
तदात्म,
झूठ से,
झूठी दुनिया से,
क्योंकि -
वह मैं नहीं |
ठहरो -
मैं करता हूँ
तदात्म,
खोल ज्ञान-चक्षु ,
निज - स्वरुप से |
बदल - अबदल में,
सत्य - असत्य में,
धूप - छांव में,
मैं ही तो हूँ |
इसलिए तो लिखता हूँ ,
देखता हूँ,
पढ़ता हूँ,
सुनता हूँ ,
अनगिनत हाथों, नेत्रों, कानों से
और रहता हूँ
हरपल हर जगह |
इसलिए तो लिखता हूँ ,
जवाब देंहटाएंदेखता हूँ,
पढ़ता हूँ,
सुनता हूँ ,
अनगिनत हाथों, नेत्रों, कानों से
और रहता हूँ
हरपल हर जगह |
बहुत सुंदर पावन भाव... उस सर्वशक्तिमान की उपस्थिति भला कौन नकार सकता है.....
AHAN BRAMHASMI
जवाब देंहटाएं