शब्दों की चहलकदमी से
चलो आज चुप्पियों को
तोड़ते हैं
याद कर बचपन के दिन
एक नया रिश्ता जोड़ते
हैं
भटक रहे थे बड़ी देर से हम
मार्ग-दर्शन एक-दूजे का
करते हैं
ब्रह्मपुत्र में बड़ी दूर
आईं किश्तियाँ
फिर से किनारों की ओर
मोड़ते हैं
चलो पगडंडियों पर चलते
हुए
पहाड़ी पर इन्द्र-धनुष
देखते हैं
देवपानी नदी के तट पर
चमकीले-चिकने कंकड खोजते
हैं
रोइंग की न्यू कालोनी में
खेल वही पुराने खेलते हैं
लौट आएँगी वही खुशियाँ
बिखरे मोतियों को पिरोते
हैं
सुंदर शब्दों के अरण्य
में
चलो भविष्य पथ खोजते हैं
कुछ कहते कुछ सुनते
संग जीवन में आगे बढते
हैं|
(c) हेमंत कुमार दुबे
http://poetrystream.blogspot.com
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