बरसों की चुप्पी के बाद
जब बजेगी फोन की घंटीक्या होगा मेरा हाल
सोच सिहर उठता है बदन
जब गूंजेंगे कानों में
बोल तुम्हारे खनकते हुएचूडियों की तरह
और वही पुरानी चिर-परिचित
सुबह के समय चहचहाती चिड़ियों सी
सुनाई देगी मृदुल हँसी
ढो रहा इस तन को कबसे
तेरी खातिर क्या जिन्दा हो जाऊँगा?
या फिर
मन्त्र-मुग्ध सा
सपनों में खो जाऊँगा?
या खुशी के मारे
दिल पर काबू न पाकर
एक बार पुन: मर जाऊँगा?
क्या होगा अंजाम मेरा
इस चक्कर में नहीं पड़नातेरे बोली को सुन
जीवित हो कर
महसूस तुझे है करना
दूर सही मीलों तुझसे
पर क्षण भर का सुख पाकर
स्वीकार मुझे है मरना|
(c) हेमंत कुमार दुबे
Bahut Hi Badhiya Rachna
जवाब देंहटाएंधन्यवाद|
हटाएंसूरज की रौशनी फूंट पड़ी हो जैसे मन के अनुरागी आँगन में काव्य की स्नेहिल सी बयार बह रही हो रोम रोम ॐ हो गया .....अद्भुद रचना को कोटि कोटि नमन .....नई कविता की नव परम्परा के द्योतकों सच आने वाला कल हमारा है महिमामंडित मंच की गौरव गाथा में चार चाँद लगाती अद्भुद रचना के सिपहियों की फ़ौज में सर्वदा आपका नाम अग्रणी रहे इसी अभिलाषा के साथ =वन्देमातरम
जवाब देंहटाएंअरविन्द योगी