> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : सात क्षणिकाएँ

सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

सात क्षणिकाएँ




                  (१)

अनामिका जब भी उठती है
मिल कर अंगूठे संग चलती है
निश्चय जानो शुभ होता है
भाल तिलक होता विजय होती है|


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                 (२)

एक झलक मिल गयी खुदा के पैगाम की
धीरे से चंद लफ़्ज जो तुमने कह दिया
एक आस बांध गयी विश्वास बढ़ गया
रेत पर जो तुमने मेरा नाम लिख दिया...
 
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                 (३)
 
प्यार के बारे में पूछा जो उनसे
न इजहार किया, न इन्कार किया
नजर भर के देखा, मुस्कुरा दिया
मैं पागल दीवाना हो गया |
 
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                  (४)
 
कुछ और नहीं तो इतना करना
जब डोली उठे पिय घर के लिए
नैनों से दो मोती लुढ़का देना
दौलत बन जायेंगे मेरे सफ़र के लिए |
 
 
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                   (५)
 
मेरी जिंदगी की अजब कहानी है
धूप छाँव की जुबानी है
यहाँ तक तो चल जाएगा
कमबख्त रात क्यों होती है|
 
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                   (६)
 
भगवन
जो जुदाई का दर्द दिया तुमने
आँसू नहीं निकले बाहर
भीतर ही जहर बन गए
मैं हँस नहीं सकता
रो भी नहीं सकता
पल पल मर रहा हूँ
बचा सकते हो
यही चुनौती है
तुम्हारे लिए..
 
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                   (७)
 
मेरा खत उसके दुश्मन को दिला दिया
बेदर्दी से दो दिलों का खून हो गया
मैंने माना तुमको अपना सखा भगवन,
छलिया, तुमने हमें ही छल लिया|
 
(c) हेमंत कुमार दुबे

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