जिन्दा हुआ हूँ फिर से
तेरी सुरीली आवाज़ पर
सजाये है मैंने कई सपने
रातों को जाग-जाग कर
सपने ये सच होगें
यकीन है यह मुझको
होगा न कष्ट कोई
भरोसा मेरा है तुझको
प्यारी दुल्हन-सी जिंदगी
कमी होगी न कहीं कोई
तेरे लिए मेरी है बंदगी
एक किताब की तरह
मेरी जिंदगी खुली हुई है
हर पन्ने पर सुनहरे अक्षर
देख, तेरा नाम लिखा है
रोज फुर्सत से पढ़ना
बहुत संभल कर रखी है
प्रिये, सिर्फ तेरे लिए
रोज का पैगाम लिखा है
अनामिका जब छुएगी
मन के तार झंकृत होंगे
बज उठेगी फिर सरगम
जीवन में नए आयाम होंगे
तेरे लिए शमा बनकर
करूंगा रोशन हर राह
खुशियों भरा हो दामन
प्रिये, यही मेरी चाह|
(c) हेमंत कुमार दुबे
बहुत खूब . सुन्दर प्रस्तुति .आभार आपका
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