> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : अक्तूबर 2013

बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

मेरी याद आये तो



ईश्वर को याद करो, दिन बदल जायेंगे
गिरते हुए दिल फिर से संभल जायेंगे
मेरी याद आये तो थोड़ा मुस्कुरा देना
फ़िजा में फिर से गुल खिल जायेंगे

फूलों को छू लेना जब चाहोगी मुझे छूना
पराग कण तुम्हारे हाथों से चिपक जायेंगे
मेरी खुशबू से महक उठेंगे हाथ तुम्हारे
मन वीणा के तार झंकृत हो जायेंगे

तितली को सिर्फ देखते ही रहना तुम
पकड़ने से पंख दोनों टूट जायेंगे
उड़ना उन्मुक्तता से मेरी आदत है
तेरे बंधन में नहीं बंध पायेंगे

देखना हो जब मुझको सुबह उठ लेना
बाग में गुनगुनाते भौंरे से मिल जायेंगे
भर लेना फेफड़ों में ताज़ी हवा
तुम्हारी साँसों में, धडकनों में बस जायेंगे |


(c) हेमंत कुमार दूबे

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

ऐलान



नट जैसे रूप और नाम बदलता
पर बदलती नहीं असली पहचान
एक ईश्वर इस जग का मालिक
उसी की रचना यह सारा जहान

यदि तुम मेरे मत से सहमत
कर दो जग में यह ऐलान
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
सब एक ही सत्ता की संतान


© हेमंत कुमार दूबे

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

कलियुग में



नुक्ताचीनी ही जिनकी आदत है
जो औरों को दर्द देकर हँसते हैं
वे अपने दर्द से तप तडपते हैं
पड़ोसी की खुशी देखकर मरते हैं

कलियुग का यही प्रभाव है
झूठे ही सच को छुपाते हैं
नेता जनता को भरमाते हैं
कौवे हंस को मारते-भगाते हैं

ज्यों चाँद बादलों से निकलता है
रात के बाद सूरज चमकता है
देर भले हो जाए न्याय में
अंतत: सत्य विजयी होता है|

(c) हेमंत कुमार दूबे

बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

लाल बहादुर शास्त्री जी



सादर नमन है देश के अमर सपूत को
लाल बहादुर शास्त्री जिनका प्रिय नाम
सादगी व ईमानदारी के जो बने मिसाल
जिनका नारा 'जय जवान, जय किसान' |

(c) हेमंत कुमार दूबे

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

सीख



लाड़-प्यार में जिसे दी मैंने आजादी
डाल दी उसने ही पैरों में लौह बेड़ी
छप्पन भोग खिलाकर जिसे बड़ा किया
दी उसने टूटे दांतों को रोटियाँ कड़ी-कड़ी
सच का पाठ पढ़ाया मैंने उसे सदा
उसकी सारी बातें रही झूठ में लिपटी
एड़ी-चोटी का जोर लगाकर मैंने उठाया
खींच ली उसने पैरों के नीचे की धरती
उम्र बढ़े उसकी रोज मांगता था प्रभु से
उसकी पूजा में थी मेरे मौत की विनती
खड़ा हुआ जब मैं भी बस की पंक्ति में
मुझको देख खुदा भी भूल गया गिनती |

© हेमंत कुमार दूबे



प्यार की दास्तां



मुद्दत बाद जो उनसे मुलाक़ात हुई, नजरें पहली बार चार हुईं |
पलकों के शामियाने तने रहे देर तक, बातें सिर्फ दो-चार हुईं ||
निहारते ही रह गए एक दूजे को, नजरें फिर शर्म से झुक गईं |
सिमट आईं बिखरी हुई खुशियाँ, आँखें प्यार की दास्तां कह गईं ||

(c) हेमंत कुमार दूबे