> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : अक्तूबर 2012

रविवार, 7 अक्तूबर 2012

भारत नाम गूंजेगा चहुओर




सुजलाम सुफलाम शस्य श्यामलं
प्यारी धरती भारत माता हमारी
इसकी कोख से जन्में हम
भारत भूमि प्राणों से प्यारी

वंदे मातरम, वंदे मातरम
बंकिम का प्यारा गीत गायेंगे
वतन के नौजवान हम
वतन पर मर मिट जायेंगे

नहीं डरेंगे हम किसी से
हिमालय जैसे अड जायेंगे
भारतवासी हम सब हैं
भारत नाम ही गुन्जाएंगे

चिंगारी हमने छोड़ दी
ज्वाला भी हम बन जायेंगे
वतन के नौजवान हम
वतन का साथ निभाएंगे

वे भ्रष्ट हो जाएँ सावधान
वे देशद्रोही सावधान
जनता के हाथ में है
वोटों का तीर और कमान

झुकेंगे अब नहीं
रुकेंगे अब नहीं
हम भारतीय है
इंडियन नहीं, इंडियन नहीं

जो समुन्दर पार के विदेशी थे
इंडिया नाम उन्होंने दिया
जो भारत के विरोधी थे
गुलामी में हमें बांध दिया

हम भरत महान की संतान
भारत नाम से हमारी संस्कृति
संस्कारों में हमारे भारत जुडा
ईश्वर प्रदत्त इसकी कीर्ति

वह करने का प्रण ले लिया
जिसमें देश का मान है
प्राण हथेली पर ले लिए
भारत में ही अपनी जान है

सपना जो देखा वीर सपूतों ने
भारत के लिए हुए न्योछावर
हम वह सपना साकार करेंगे
भारत नाम गूंजेगा चहुओर |

(c) हेमंत कुमार दूबे

अपने देश का नाम हर जगह, चाहे राष्ट्रीय मंच हो या अंतर्राष्ट्रीय, भारत ही होना चाहिए | इंडिया नाम विदेशियों ने दिया और आज भी गुलामी की इससे गंध आती है | इंडिया नाम हमें याद दिलाता है कि हम गुलाम रहे हैं जबकि  भारत नाम हमें अपनी संस्कृति, अपने संस्कारों, अपनी अखंडता, विश्व में संप्रभुता की याद दिलाता है  | भारत नाम हमें अपनी ऊँची कीर्ति की याद दिलाता है और हमारे अन्दर देश प्रेम का जज्बा भरता है और अपनी माटी से, अपनी जननी जन्म भूमि से जोड़ता है | प्रण लें कि हर जगह अपने देश को भारत नाम से ही बुलाएँगे और हर जगह इंडिया न लिख कर भारत ही लिखेंगे |  

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

पता है मुझको दोस्त



मेरे जज्बातों से न खेल दोस्त 
आँखों में नमी देख ले 
इतना न उड़ हवा में 
खिसक जायेगी जमीं पांवों तले

कभी मेरे सुख दुःख का साथी था
आज गैरों के संग है 
क्या हुआ तेरे दिल को 
सोच तेरी क्यों तंग है

देख कर मेरी हालत 
आज तुझको जो हंसना आया
हँसेंगे तुझ पर वे सब
जिन्होंने तुझे भरमाया 

न खेल वह खेल 
जिसे खेलना आता नहीं
पता है मुझको दोस्त
तुझे हारना सुहाता नहीं

जो साथ खड़े तेरे
चंद दिनों के साथी हैं
यारी अपनी वर्षों से
हम बचपन के साथी हैं 

डर बर्बादी का मुझको नहीं
डरता हूँ सिर्फ तेरे लिए
दर्द जो दे रहा मुझको
बनेगा कल शूल तेरे लिए 

नेकी का बदला मिलता है
बदी भी रंग दिखलाती है 
रहम जो हो अपने पास में
तो रहमत भी मिल जाती है |

(c) हेमंत कुमार दूबे