> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : 2013

शुक्रवार, 27 दिसंबर 2013

तुम्हारा संकल्प



समुंदर में उठती गिरती
लहरों को पता नहीं
कितनी खूबसूरती से लिखा
तुमने रेत पर मेरा नाम

उन्हें तो आदत है
किनारों से टकराने की
मिटाने की
बहा ले जाने की

पर तुम्हारे बारे में 
वे नहीं जानती
मैं जानता हूँ
क्योंकि
मैं देख रहा हूँ
तुम्हारा संकल्प
बार बार लिखना
उसी सुंदरता से
परवाह किये बिना
लहरों की

तुम लिखती रहोगी
तबतक जबतक
मैं जिद न करूँ
प्यार से
ठहरने की

क्योंकि मैं जानता हूँ
तुम्हें प्यार है
सिर्फ मुझसे
हद से ज्यादा|

(c)
हेमंत कुमार दूबे

बुधवार, 4 दिसंबर 2013

निवारण



कोई बता दे मुझे
उनकी याद क्यों सताती है
कृष्ण नाम है उनका
फिर काली रात क्यों डराती है

जगत के आधार हैं वे
फिर क्यों निराधार समझते लोग मुझे
उनके हाथ में पतवार जिंदगी की
फिर दिशा भ्रम क्यों

मोहन रूप से मोहते जगत वे
शायद यही कारण है
उनकी कृपा बरसने से ही
सभी समस्याओं का निवारण है|


© हेमंत कुमार दूबे

शनिवार, 9 नवंबर 2013

शुभ-संकल्प


राम अवध आये तब जल उठे दीप
बज उठी शहनाई, तुरही, ढोल, नगारे
दूर हुआ अँधियारा जीवन में
ख़ुशी से झूम उठे नगरवासी सारे

जली जोत आतम की सबके भीतर
फैला ज्ञान, बही भक्ति की धारा
सुखी प्रजा, नहीं कहीं दुःख-क्लेश
चहुँ ओर गूँजा 'जय श्री राम' नारा

नेतृत्व तम से अब ग्रसित चमन में
देश-भक्ति की अविरल बहे धारा
राम-राज हो सुखी प्रजा जन
करें शुभ-संकल्प, 'हेमंत' पुकारा


कुशल नव-नेतृत्व हो देश का  
चमक उठे भारत का भाग्य सितारा
राम करें, मिटे गरीबी, बढे अमीरी
उन्नति हो देश की, देखे जग सारा ।


(c) हेमंत कुमार दूबे

बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

मेरी याद आये तो



ईश्वर को याद करो, दिन बदल जायेंगे
गिरते हुए दिल फिर से संभल जायेंगे
मेरी याद आये तो थोड़ा मुस्कुरा देना
फ़िजा में फिर से गुल खिल जायेंगे

फूलों को छू लेना जब चाहोगी मुझे छूना
पराग कण तुम्हारे हाथों से चिपक जायेंगे
मेरी खुशबू से महक उठेंगे हाथ तुम्हारे
मन वीणा के तार झंकृत हो जायेंगे

तितली को सिर्फ देखते ही रहना तुम
पकड़ने से पंख दोनों टूट जायेंगे
उड़ना उन्मुक्तता से मेरी आदत है
तेरे बंधन में नहीं बंध पायेंगे

देखना हो जब मुझको सुबह उठ लेना
बाग में गुनगुनाते भौंरे से मिल जायेंगे
भर लेना फेफड़ों में ताज़ी हवा
तुम्हारी साँसों में, धडकनों में बस जायेंगे |


(c) हेमंत कुमार दूबे

मंगलवार, 8 अक्तूबर 2013

ऐलान



नट जैसे रूप और नाम बदलता
पर बदलती नहीं असली पहचान
एक ईश्वर इस जग का मालिक
उसी की रचना यह सारा जहान

यदि तुम मेरे मत से सहमत
कर दो जग में यह ऐलान
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
सब एक ही सत्ता की संतान


© हेमंत कुमार दूबे

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

कलियुग में



नुक्ताचीनी ही जिनकी आदत है
जो औरों को दर्द देकर हँसते हैं
वे अपने दर्द से तप तडपते हैं
पड़ोसी की खुशी देखकर मरते हैं

कलियुग का यही प्रभाव है
झूठे ही सच को छुपाते हैं
नेता जनता को भरमाते हैं
कौवे हंस को मारते-भगाते हैं

ज्यों चाँद बादलों से निकलता है
रात के बाद सूरज चमकता है
देर भले हो जाए न्याय में
अंतत: सत्य विजयी होता है|

(c) हेमंत कुमार दूबे

बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

लाल बहादुर शास्त्री जी



सादर नमन है देश के अमर सपूत को
लाल बहादुर शास्त्री जिनका प्रिय नाम
सादगी व ईमानदारी के जो बने मिसाल
जिनका नारा 'जय जवान, जय किसान' |

(c) हेमंत कुमार दूबे

मंगलवार, 1 अक्तूबर 2013

सीख



लाड़-प्यार में जिसे दी मैंने आजादी
डाल दी उसने ही पैरों में लौह बेड़ी
छप्पन भोग खिलाकर जिसे बड़ा किया
दी उसने टूटे दांतों को रोटियाँ कड़ी-कड़ी
सच का पाठ पढ़ाया मैंने उसे सदा
उसकी सारी बातें रही झूठ में लिपटी
एड़ी-चोटी का जोर लगाकर मैंने उठाया
खींच ली उसने पैरों के नीचे की धरती
उम्र बढ़े उसकी रोज मांगता था प्रभु से
उसकी पूजा में थी मेरे मौत की विनती
खड़ा हुआ जब मैं भी बस की पंक्ति में
मुझको देख खुदा भी भूल गया गिनती |

© हेमंत कुमार दूबे



प्यार की दास्तां



मुद्दत बाद जो उनसे मुलाक़ात हुई, नजरें पहली बार चार हुईं |
पलकों के शामियाने तने रहे देर तक, बातें सिर्फ दो-चार हुईं ||
निहारते ही रह गए एक दूजे को, नजरें फिर शर्म से झुक गईं |
सिमट आईं बिखरी हुई खुशियाँ, आँखें प्यार की दास्तां कह गईं ||

(c) हेमंत कुमार दूबे

सोमवार, 30 सितंबर 2013

उसका आना




वो ऐसे आई जीवन की सूनी सड़क पर
जैसे तेज रफ़्तार वाली लाल फरारी
नजर उठाकर जबतक मैं उसे देखता
धूल के गुबार ने बदल दी दुनिया सारी|

(c) हेमंत कुमार दूबे

शनिवार, 21 सितंबर 2013

তুমাৰ নাম / तुम्हारा नाम




কী কৰুঁ, কত জাউ, পথ মুকে না বুজায়
ঘন বন, ভোৰিত কাঁইট, কেঁকণি উলায়
প্ৰকাশবিহীন কলা ৰাতি, মন ভয় পায়
এই সময় তুমাৰ নাম মুখত উলাই পায় |

(c) হেমন্ত কুমাৰ দুবে

-------------------------------- हिंदी अनुवाद------------

क्या करूँ, कहाँ जाऊं, सूझती नहीं है राह
गहन वन, पैरों में कांटे, निकलती है आह
काली अँधेरी रात, मन मेरा डर जाए
ऐसे समय तुम्हारा नाम मुख से निकल जाए |

(c)    हेमंत कुमार दुबे

शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

सिर्फ तुम्हारे लिए



होंठों से जो गीत लिखता हूँ सिर्फ तुम्हारे लिए
सुन कानों से ह्रदय में संभाल लेना प्रिये मेरी
सोना-चांदी-हीरे-जवाहरात नहीं देने को तुम्हें
हवा की तरंगों पर लिख भेजी दास्ताँ सुनहरी|

(c) हेमंत कुमार दूबे

माँ रोज मिलती है



वो मुझसे हररोज मिलती है
कानों में प्यार भरे शब्द कहती है
मुझे निहारती और दुलारती है
कोमल कर स्पर्श से थकान हरती है
'हेमंत' माँ दूर दराज गाँव में रहती है
पर सपनों में तो सदा पास होती है|

(c) हेमंत कुमार दूबे
http://poetrystream.blogspot.com/

मंगलवार, 10 सितंबर 2013

तीन क्षणिकाएँ



मैं उनके नाम की माला जपता रहा
उन्होंने घर को ही आग लगा दी
परमात्मा में जब आत्मा मिल गयी
उन्होंने मेरी राख यमुना में बहा दी |

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चींटे को बार बार दूर करता हूँ
फिर भी वह मेरे पास आता है
बेवफा इंसानों से तो अच्छा है
उससे शायद कोई पुराना नाता है |

*************************

तुम एक कलमा ही पढ़ दो
मेरी मजार पर फूल रखकर
जन्नत मिल जायेगी मुझको
या जी उठेगी रूह सुनकर |

(c) हेमंत कुमार दूबे

बुधवार, 4 सितंबर 2013

धरती



श्वेत, पीत, गुलाबी, नीले
रंग अनेक  कुसुम सुगन्धित
धानी चुनर ओढ़े धरती
अरुण रश्मि से आलोकित

वर्षा ऋतु में किये नव सृंगार
पालिनी सब जड़-चेतन की
विस्तृत नील गगन के नीचे
सुन्दर लगती है दुल्हन जैसी

(c) हेमंत कुमार दूबे

अद्वैत भावना



अबतक जो देखा सुना था
नाम रूप से बंधा हुआ था
मिलकर पंचतत्वों से  सबकुछ
काया माया सब गुंथा हुआ था

संग किया जब सत् का मैंने
मेरी तेरी की सब मिटी भावना
यारी सारी मोहन से हो गई
है एक ही ईश्वर बनी दृढ धारणा

वह यह का भेद दूर हुआ
मुझको मिली हरि रस की प्याली
प्राण हुआ ईश्वर में प्रतिष्ठित
प्यारी है ज्ञान-ज्योत निराली उजियाली |


(c) हेमंत कुमार दूबे

शनिवार, 31 अगस्त 2013

The divine knowledge



It doesn't matter who loves or who hates
Guruji has opened divine knowledge's gate
In lovers and haters see no difference
Because from God everything comes

He is the creator and the destroyer 
The hungry and the hunger too
The bread, its provider and the eater
And He is wish, the wisher and its filler too.

(c) Hemant Kumar Dubey

The beautiful goal



The valley of wild flower is enchanting
And the surrounding forests are deep
There are promises that I have to keep
The climb the hills however they be steep

I have rested a while
I have charted a new way
A way to help people
And be happy and gay

Help the people reach the top
Help the needy without stop
To seek the Supreme is my goal
I am one with Him, no separate soul

Beloved, you are my integral part
The journey together we have to start
Hand in hand we have to walk and run
Life will be enjoyment and fun.

© Hemant Kumar Dubey


सोमवार, 26 अगस्त 2013

उसकी आदत



तिरछी नजर से जो उसने मुझे देखा
मैं सुध-बुध भूला बैठा
पलकें झुकाकर जब वो मुस्कुराई
मैं सारा जीवन लुटा बैठा

एक पल की खुशी की खातिर
हाय, मैंने यह क्या किया
मेरे चाहने वाले तो और भी थे
सबको दर्द दिया, रुसवा किया

मैं मिट गया उसके लिए
चेहरे पर उसके शिकन नहीं है
बड़ी देर से समझ आया
छलना ही उसकी आदत है |

(c) हेमंत कुमार दूबे

रविवार, 18 अगस्त 2013

प्रेम वर्षा


इस सावन की आखिरी बारिश
कभी खिलखिलाती
कभी ठहाके लगाती
भिगो रही थी
दो बदनों को

एक छाते के नीचे
आधे सूखे, आधे गीले
अल्हड मस्ती से टहलते
पानी के पतले रेलों पर
पैरों से छप-छप करते
सूनी सड़क पर तलाशते बचपन

कभी फैला कर बाँहों को
समेट लेने को मानो आतुर
बीते वर्षों के बिखरे मोती
बरस रहे जो अम्बर नैनों से

अद्वैत भाव से भरे हुए
प्रीतम वर्षों बाद मिले थे
प्रेम वर्षा को करते आत्मसात
एक-एक पल जी रहे थे

एक छाते के नीचे दोनों
फिर भी पूरे भीग रहे थे
रिमझिम-रिमझिम बूंदों से
तन भर मन भर |


© हेमंत कुमार दूबे 

शनिवार, 17 अगस्त 2013

नवजीवन दे जाओ



जब घबरा जाता हूँ जिंदगी से
तंग आ जाता हूँ लोगों की बेरुखी से
करता हूँ याद तुम्हें तहे-दिल से
जानते हुए कि अभी तुम्हें प्यार नहीं मुझसे

तुम बेवफा नहीं, मजबूर हो
उस ईश्वर की खूबसूरत कला हो
सबको प्यार देती हो
पर तभी जब उनका समय हो

समझते नहीं लोग तुम्हारे प्रेम को
तुम्हारे अनमोल उपहार को
क्योंकि वे देख नहीं सकते भविष्य को
अपना जो लेती हो पूरी तरह उनको

तुम मेरे पास आओ
मुझको अपना बनाओ
मेरी रूह को सुकून पहुँचाओ
फिर से नवजीवन दे जाओ

अपनों की दुनिया में बेगाना हूँ
ईश्वर का चहेता और दीवाना हूँ
हर जन्म में तुमसे मिलता आया हूँ
मृत्यु देवी, तुम्हारे लिए नया नहीं पुराना हूँ |



© हेमंत कुमार दूबे

गुरुवार, 15 अगस्त 2013

स्वतंत्रता – दिवस





स्वतंत्रता दिवस जिस दिन मनाते हैं,
लक्ष्मी बाई झाँसी की रानी,
मंगल पांडे, बहादुर शाह ज़फर,
वीरों की याद आती कहानी |

तात्या, नाना, बिरसा, आज़ाद,
जैसे वीर अंग्रेजों से लड़े थे,
गाँधी, नेहरू, लाल-बाल-पाल,
स्वतंत्रता पथ के पुजारी अड़े थे |

नौरोजी, गोखले, पटेल, शास्त्री,
अंग्रेजों के सम्मुख डटकर खड़े थे  
सरोजिनी, महादेवी, मैथिलि, दिनकर भी
अपने स्वर और कलम ले भिडे थे |

राजगुरू, सुखदेव, भगत सिंह,
जैसे जांबाज अमर शहीदों की,
याद आती है परम कुर्बानी
बिस्मिल, खुदीराम, सुभाष की |

बलिदान हुए असंख्य वीर,
स्वतंत्रता सस्ती नहीं मिली,
लता से वीरों की गाथाएँ सुन
होता रोमांचित तन, आंखे गीली |

देशभक्ति हिलोरें मारती मन में,
स्वतंत्रता दिवस जब मानते हैं ,
संकल्प देश की स्वतंत्रता-रक्षा का
१५ अगस्त को फिर दुहरा लेते हैं |


(c) हेमंत कुमार दूबे

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

God’s unique ways



When called from inner depths
God listens to our prayers
Like rain His pure love showers
Pain, misery and all hurdles
Flow away like straws in river
The clouds of uncertainty clear
In the blue sky Sun shines bright
God shows us path and His light.


© Hemant Kumar Dubey

शनिवार, 13 जुलाई 2013

मेरी अभिलाषा


 
नदी किनारे आम्र वृक्ष पर
माँ-बाप सहित मेरा बसर था
रंग-बिरंगे पंक्षी मेरे साथी
एक सुंदर उपवन मेरा घर था
 
नई जगह तलाशते रहने का
नए सफ़र का मुझे शौक था
मेरे परिजन मना करते थे
लेकिन उड़ने का मेरा शौक था

उड़ता-उड़ता अनजान शहर में
आ पहुँचा मैं एक पेड़ पर
भूख प्यास से व्याकुल था
शहरी व्यवहारों से बेखबर

कुछ चने के दाने देखे
कटोरी में थोड़ा पानी था
उतर आया मैं जमीं पर
इतने में जाल मेरे ऊपर था

लोहे का एक पिंजरा आया
जिसके अन्दर था दाना-पानी
बड़े प्यार से पाला गया मैं
बदल गईं मेरी जिंदगानी

मिर्ची भात खिलाया जाता
नित नए पाठ सिखलाया जाता
दुहराता जब मैं बातों को
थपकी देकर फुसलाया जाता

उड़ने की मेरी चाहत रहती
पिंजरे को झुलाया जाता
मुझको भरमाने के लिए
मिट्ठू नाम से बुलाया जाता

अपनी भाषा भूल गया मैं
सीखा मानव जैसे बोलना
समझूँ चाहे मैं न समझूँ
हर लफ़्ज को दुहरा देना

जी हाँ, जी हाँ करते रहना
बन गयी अब मेरी मज़बूरी
आँसू चाहे मैं जितना बहाऊं
उड़ने की तम्मना न होती पूरी

पंख फडफडाता चाहे जितना
लौह सलाखों से टकराते हैं
आजादी के सब मेरे सपने
नित चकनाचूर हो जाते हैं

शहरी मानव में नहीं दया-भाव
वे मशीनों की तरह जीते हैं
रिश्ते-नाते सब उनके बेमानी
एक-एक पैसा जोड़ते रहते हैं

मैं पंक्षी उन्मुक्त गगन का
सुनी तुमने मेरी व्यथा-कहानी
मिट्ठू नाम मुझे नहीं चाहिए
नहीं पिंजरे का दाना पानी

मेरी अभिलाषा बस इतनी है
पिंजरे का दरवाजा खुल जाए
नित यही प्रार्थना ईश्वर से है
कैद से मुक्ति मिल जाए |

© हेमंत कुमार दूबे