> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : जुलाई 2012

रविवार, 29 जुलाई 2012

सत्य की होगी जीत





आज चारों तरफ हल्ला है,
यह बदनसीबों का मोहल्ला है,
इंसान की प्रार्थनाओं में,
कहीं ईश्वर, कहीं अल्लाह है|

मंहगाई की मार से बेहाल,
इंसानों के हाथों में खंजर हैं,
पथराई आँखों से देखते हैं,
अपनी ही फिक्र में सब हैं|

योग-क्षेम वाहन करूंगा,
गीता में कृष्ण कहते हैं,
फिर भूखे सोते जाने कितने,
कहाँ वो ईश्वर हमारा है?

अन्ना जबतक है साथ हमारे,
अहिंसा के पथ पर बढ़ाना है,
एक जुट होकर शांति से,
अधिकारों के लिए लड़ना है|

सत्य की होगी जीत,
ऐसा दृढ विश्वास है,
नोचते जो जनता को,
उनका निश्चित विनाश है |

(c) हेमंत कुमार दुबे

रविवार, 22 जुलाई 2012

प्रार्थना






जब देखता हूँ मित्र,
तुम्हारा चमकता-दमकता चेहरा,
पूनम का चाँद,
जैसे धरती पर उतर आया हो |

प्रकट हुए जब भी,
तुम्हारे गुलाबी होंठों से,
कमल नेत्रों के इशारों में,
कोई वचन,
मेरा भला ही हुआ |

धन्यवाद प्रभु,
तुमने सच्चा दोस्त दिया,
विश्वास-पात्र मित्र,
सुख-दुःख का साथी दिया |


खूबसूरत रचनाओं के लिए,
मधुर संबंधों के लिए,
अनमोल तोहफे के लिए,
सच्ची दोस्ती के लिए,
गर्माहट देती जो सर्दियों में,
शीतल छाया गर्मियों में,
उज्वल करती पथ मेरा,
बारंबार,
मेरे प्रभु, धन्यवाद|


फुसफुसाते होठों से,
जुड़े हुए हाथों से,
प्रार्थना है –
हे सर्वशक्तिमान,
संसार के मालिक !

जबतक सूरज-चाँद रहें,
मेरा मित्र रहे,
स्वस्थ-प्रसन्न,
सुख-शांति हो घर-परिवार में,
विद्वता और कीर्ति फैले,
सारे संसार में |

नारी




नारी की जो इज्जत करते नहीं,
वे नर नहीं, पशु भी नहीं,
दैत्यों के समान हैं,
जिस घर में नारी पूजित नहीं,
वह घर मसान है|

परायी स्त्री देख कर,
जिसमें आदर भाव उपजे नहीं,
जो समझे न माँ, बहन, बेटी,
वह केवल शैतान है|

शैतानों को जो शह दे,
वह भी नर नहीं,
पत्थर के समान है,
सभ्य समाज में उसका,
नहीं कोई स्थान है |

ऐसे अधमधामों का,
पत्थर दिल दुष्टों का,
न कोई धर्म है,
न कोई भगवान है|

नारी नारायणी है,
माँ, बहन, बहू, बेटी है,
इससे ही धरती है,
इससे ही संसार है,
नारी की जो रक्षा करे,
मान दे, आदर दे,
वही सच्चा इंसान है |

रविवार, 1 जुलाई 2012

नूरानी निगाहों का जादू





















झूठे गन्धर्वों की सभा में,
मोहिनी का छाया जादू था|
राग-रागिनियों में सब उलझे,
रंग-रलियों का नशा चढ़ा था|

प्यालों से पीने वाले,
      मदहोश हुए से झूम रहे|
डींगों से अपनी बनते बड़े,
      आपस में लड़ते-झगड़ते रहे |

तब एक फकीर बाबा ने,
      नज़रों से कुछ ऐसा पिलाया|
बेहोशी से सब उठ बैठे,
      भ्रम का छूट गया साया|

नूरानी निगाहों का जादू,
ईश्वर से मिलाने वाला था|
नश्वर को शाश्वत मानने का,
भ्रम दूर भागने वाला था|

आये कहाँ से गए किधर,
सूरत जिनकी भोली-भाली है|
गन्धर्व बने फिर से मानव,
बाबा की बात निराली है|

© हेमंत कुमार दुबे