> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : मैं क्या करूँ?

शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

मैं क्या करूँ?


 

 
मेरे दिल की बात को न समझी तू
हो रही नाराज सदा, मैं क्या करूँ ?

पीने को मैंने दिया दूध का प्याला
तुझे नजर आया जहर, मैं क्या करूँ?

निःस्वार्थ प्यार किया तुझसे जानी
तुझे दिखा स्वार्थी रूप, मैं क्या करूँ?

तपती दोपहरी में लाया वृक्ष की छाँव
तूने फिर भी खोजी धूप, मैं क्या करूँ?

सुगन्धित सुमन माला मैंने पहनाई
तुझे लगी लौह जंजीर, मैं क्या करूँ?

कर्मों का सब हेर फेर मैं समझ गया
तू समझ न पाए तो बता, मैं क्या करूँ?

 
(c) हेमंत कुमार दुबे

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