तू जानती है मुझको
क्योंकि
रहती हूँ तेरे घर में
और फिर
तुझसे पूछते हैं लोग
मेरे बारे में
क्योंकि
जिसे जग पूजता है
जिसके बिना भगवान
अतृप्त रह जाते हैं
जो औषधि बन
दूर करती है अनेकों बीमारियाँ
शारीरिक, मानसिक या अध्यात्मिक
और जिसके पास बैठने से
मिलती है शांति
वह मैं हूँ -
तेरे आंगन में उपेक्षित
तुलसी
कुछ प्रश्न मुझे सालते हैं
टीस से कराहती हूँ -
क्यों न बदली तेरी सोच
तेरी करनी
और मैं क्यों हुई उपेक्षित
रोज के एक लोटे जल से
सूखने को मजबूर
ईश्वर ने पनपाया मुझको
तेरे आँगन में
पर
प्राणिमात्र को आराम देने वाली
सबके सुख-दुःख की संगी
क्या प्यासे मारना है मेरी नियति है?
पूछ रही हूँ तुझसे
मैं तेरे आँगन की तुलसी |
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