तुम मेरे बारे में सबसे
कह देना
कैसे उजाड़ दिया मैंने
सैकड़ों का घर
तोड़ दी वह सड़क
जिस पर चल कर राही
पाते थे मंजिल
लील लिया कैसे मैंने
हजारों के अरमानों को
करेंगे लोग तुम पर
विश्वास
क्योंकि
यह समय तुम्हारा है
इसलिए तो की है तुमने
अपनी मनमानी
छेड़ा है धरा को
उसकी अभिन्न प्रकृति को
और नहीं छोड़ा मुझको
जीवन देने के लायक
भर दिया जहर ही जहर
वर्ना मैं
विष्णु चरणों से निकली
ब्रह्मा से सत्कारित
शिव के मस्तक की शोभा
पतित पावनी गंगा
जो देती आई जीवन युगों
से
और तारती आई पुरखों को
औषधीय गुणों वाली
तबाही न मचाती
कलियुग में मेरा जो हाल
है
क्या वह इन्द्र को पता
नहीं
क्या वह विष्णु ने देखा
नहीं
धरती जिस पर मैं बहती
क्या वह मेरी पीड़ा
जानती नहीं
क्षिति, जल, पावक और
गगन
सब जानते हैं मेरी
व्यथा
और इसलिए उनके आँसू
जब बरसते हैं मेघ बन
तो आता है सैलाब मेरे
अन्दर भी
और न चाहते हुए भी
टूट जाता है मेरा धैर्य
झांको, हे कलियुगी मानव
भोगी स्त्री-पुरुषों
अपने भीतर
और
बंद करो प्रताड़ना
प्रकृति का
करो संकल्प, स्वस्थ सोच
का
ईश्वर के उपहारों के
संरंक्षण का
तभी बचेगा जीवन
तुम्हारा, आने वाली
पीढ़ी का
और बनेगा सुखमय जीवन |
©
हेमंत कुमार दुबे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें