एक फूल सी मिली है जिंदगी
खुशबू बिखेरने में मजा है
तुम मेरी रजा में रजामंद रहो
मेरी बस इतनी सी रजा है
न है कोई शिकवा या गिला
बड़ी मिन्नत से ये लम्हा मिला है
मैं तुम्हारी सुनूँ तुम मेरी सुनो
खुदा के दर को कारवां चला है
डोली में बैठा है वो मुसाफ़िर
जिसकी मर्जी से ये जहां चला है
भार तेरे मेरे कन्धों पर थोड़ा
बाकि औरों के कन्धों पर रखा है
प्रेम से कदम मिलाओ साथी
चलो मुसाफ़िर ले चलता जहाँ है
जो उसका अलिशाने घर है
अपना ठौर ठिकाना भी वहीं है|
© हेमंत कुमार दुबे
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