> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : मानसून की पहली बारिश

रविवार, 16 जून 2013

मानसून की पहली बारिश


 

 

खुली हुई खिड़की पर

गौरैया जब चहचहाई

सूरज की पहली किरण

जब बंद आँखों से टकराई

ठंढ़ी हवा का झोंका

जब पर्दों को लहरा गया

आँखें मलते-मलते

उठ बैठा मैं|

 

छत पर गमलों की कतार में

खिले थे कई पुष्प

जिनमें एक छोटी कली

भीगी-भीगी मुस्काई

हवा के झोंके से खिलखिलाई

और धीरे से कहा

जीवन की पहली बारिश

खूबसूरत होती है|

 

रात में जब जग सोया

मानसून की पहली बारिश में

धरती भीग रही थी

और मैं जानता हूँ

गर्मी के बाद बरसात

देती है राहत वैसे ही

जैसे लंबे अंतराल पर प्रिय मिलन

जिससे खिल उठता है

हर प्रेमी-प्रीतम का जीवन|


(c) हेमंत कुमार दुबे

 

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