खुली हुई खिड़की पर
गौरैया जब चहचहाई
सूरज की पहली किरण
जब बंद आँखों से टकराई
ठंढ़ी हवा का झोंका
जब पर्दों को लहरा गया
आँखें मलते-मलते
उठ बैठा मैं|
छत पर गमलों की कतार में
खिले थे कई पुष्प
जिनमें एक छोटी कली
भीगी-भीगी मुस्काई
हवा के झोंके से खिलखिलाई
और धीरे से कहा
जीवन की पहली बारिश
खूबसूरत होती है|
रात में जब जग सोया
मानसून की पहली बारिश में
धरती भीग रही थी
और मैं जानता हूँ
गर्मी के बाद बरसात
देती है राहत वैसे ही
जैसे लंबे अंतराल पर प्रिय मिलन
जिससे खिल उठता है
हर प्रेमी-प्रीतम का जीवन|
(c) हेमंत कुमार दुबे
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