> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : रास-लीला

शनिवार, 1 जून 2013

रास-लीला



 

अधरामृत पान किया जिस गोपी ने

ना सुध-बुध खोए वो कैसे

मिलन की रात यमुना के तट पर

कान्हां संग रस रचाए ना कैसे

 

तुमसे ना रुकेंगी, हे ब्रजवासी

प्रेम में श्याम के वे दीवानी हैं

है प्राणों से प्यारा उनको मोहन

मुझको पता है, वे मेरे सखा हैं

 

नित दर्शन की अभिलाषा है उनको

मिलन की रात को जोहते दिन बीते हैं

हो प्रेम मगन, वे पथ में ही खड़ी

अपना प्राण-प्यारा सुंदर वे ढूंढे हैं

 

सखियों की दशा मोहन भी जाने

वे उनमें बसते, हृदय को पहचाने

रासलीला रचाई मोहन ने गोपियों संग

सुख देकर अद्वैत-भाव में जगाने |

 

© हेमंत कुमार दुबे

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