> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : अन्ना

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रविवार, 29 जुलाई 2012

सत्य की होगी जीत





आज चारों तरफ हल्ला है,
यह बदनसीबों का मोहल्ला है,
इंसान की प्रार्थनाओं में,
कहीं ईश्वर, कहीं अल्लाह है|

मंहगाई की मार से बेहाल,
इंसानों के हाथों में खंजर हैं,
पथराई आँखों से देखते हैं,
अपनी ही फिक्र में सब हैं|

योग-क्षेम वाहन करूंगा,
गीता में कृष्ण कहते हैं,
फिर भूखे सोते जाने कितने,
कहाँ वो ईश्वर हमारा है?

अन्ना जबतक है साथ हमारे,
अहिंसा के पथ पर बढ़ाना है,
एक जुट होकर शांति से,
अधिकारों के लिए लड़ना है|

सत्य की होगी जीत,
ऐसा दृढ विश्वास है,
नोचते जो जनता को,
उनका निश्चित विनाश है |

(c) हेमंत कुमार दुबे

गुरुवार, 26 जनवरी 2012

गणतंत्र दिवस मनाना है



गणतंत्र दिवस जब हम मनाते है,

राष्ट्रीय-गान जब गाते हैं,

रेडियो या टीवी पर देख-सुन

बहादुर बच्चों को, जांबाजों को,

हथियारों के प्रदर्शन को,

रंग-बिरंगी झांकियों को,

पारंपरिक नृत्यों को,

कुछ पल के लिए ही सही,

देश से जुड़ जाते हैं|



देशभक्ति तो सबके अंदर है,

अपनी आत्मा की तरह,

पर प्रतिदिन उसका गला घोंटने,

उसको मारने का काम,

हमलोग ही तो करते हैं|



गणतंत्र दिवस हम मनाएंगे,

अपने लिए,

अगली पीढ़ी के लिए,  

क्योंकि जीने के लिए

जैसे जरूरी है साँसें,

उसी तरह जरूरी है देश-प्रेम,

थोडा सी सही,

पर निश्चित तौर पर|



क्योंकि तभी तो

देश के नौनिहाल आगे बढ़ेंगे,

थामेंगे तिरंगा,

पहनेंगे फिर गाँधी टोपी,

अन्ना, अरविन्द या किरण के संग,

मिल कर बोलेंगे –

भष्टाचार मिटाना है|



गणतंत्र दिवस मनाना है,

देश-भक्ति को जगाना है,

क्योंकि देश से ही,

वजूद है हमारा|


(c) हेमंत कुमार दुबे