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शनिवार, 13 सितंबर 2025

धूप छांव जिंदगी

धूप छांव जिंदगी | हिंदी कविता | हेमंत कुमार दुबे 'अव्यक्त'

धूप छांव जिंदगी

✍️ · 📍 गाज़ियाबाद · 🗓️

थोड़ी धूप थोड़ी छांव है जिंदगी
एक अलसाई सी सुबह में
गो खुरों की उड़ाई धूल से अटी
भारत का एक गांव है जिंदगी।

कभी अतीत को पलट कर देखती
वर्तमान को संवारती है जिंदगी
शाम के धुंधलके में देहरी पर बैठी
अंत को तलाशती उदास है जिंदगी।

कभी अपनों से झिड़क को सहती
परायों में अपनापन ढ़ूंढ़ती है जिंदगी
औरों पर हंसती कभी खुद पर मुस्कराती
कभी आंसू की नदी बहाती है जिंदगी।

कभी फूल के परागों का गुलाल लगे
कभी पल्ले आया बवाल लगे जिंदगी
अक्सर तो गणित का सवाल लगे
कभी सुंदर स्वप्न संसार लगे जिंदगी।

शहर की आपाधापी में जंजाल लगे
तो कभी चकाचौंध में मायाजाल जिंदगी
एक-एक पाई के लिए लड़ती-भिड़ती
कभी थकी-सी तो कभी बेमिसाल जिंदगी।

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