> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : कलियुग में

गुरुवार, 3 अक्टूबर 2013

कलियुग में



नुक्ताचीनी ही जिनकी आदत है
जो औरों को दर्द देकर हँसते हैं
वे अपने दर्द से तप तडपते हैं
पड़ोसी की खुशी देखकर मरते हैं

कलियुग का यही प्रभाव है
झूठे ही सच को छुपाते हैं
नेता जनता को भरमाते हैं
कौवे हंस को मारते-भगाते हैं

ज्यों चाँद बादलों से निकलता है
रात के बाद सूरज चमकता है
देर भले हो जाए न्याय में
अंतत: सत्य विजयी होता है|

(c) हेमंत कुमार दूबे

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