मुद्दत बाद जो
उनसे मुलाक़ात हुई, नजरें पहली बार चार हुईं |
पलकों के
शामियाने तने रहे देर तक, बातें सिर्फ दो-चार हुईं ||
निहारते ही रह गए
एक दूजे को, नजरें फिर शर्म से झुक गईं |
सिमट आईं बिखरी
हुई खुशियाँ, आँखें प्यार की दास्तां कह गईं ||
(c) हेमंत कुमार दूबे
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