> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : प्यार की दास्तां

मंगलवार, 1 अक्टूबर 2013

प्यार की दास्तां



मुद्दत बाद जो उनसे मुलाक़ात हुई, नजरें पहली बार चार हुईं |
पलकों के शामियाने तने रहे देर तक, बातें सिर्फ दो-चार हुईं ||
निहारते ही रह गए एक दूजे को, नजरें फिर शर्म से झुक गईं |
सिमट आईं बिखरी हुई खुशियाँ, आँखें प्यार की दास्तां कह गईं ||

(c) हेमंत कुमार दूबे

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