लाड़-प्यार में जिसे दी मैंने आजादी
डाल दी उसने ही पैरों में लौह बेड़ी
छप्पन भोग खिलाकर जिसे बड़ा किया
दी उसने टूटे दांतों को रोटियाँ कड़ी-कड़ी
सच का पाठ पढ़ाया मैंने उसे सदा
उसकी सारी बातें रही झूठ में लिपटी
एड़ी-चोटी का जोर लगाकर मैंने उठाया
खींच ली उसने पैरों के नीचे की धरती
उम्र बढ़े उसकी रोज मांगता था प्रभु से
उसकी पूजा में थी मेरे मौत की विनती
खड़ा हुआ जब मैं भी बस की पंक्ति में
मुझको देख खुदा भी भूल गया गिनती |
© हेमंत कुमार दूबे
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