श्री जुबिन गर्ग जी के असमिया और हिन्दी गीतों से प्रेरित यह नूतन भाव काव्यांजलि, उन्हीं को सादर समर्पित...
तुम ही हो
सिर्फ तुम
जिधर भी देखता हूँ
जीवन में
संसार में
अपनी कल्पना में
पूजा में
अर्चना में
भावों की विवेचना में
तब से
जब से देखा है तुम्हें
सूदूर छोटे शहर के हरे मैदान में
विस्तृत नील गगन के नीचे
इठलाती तितली-सी
खिलखिलाती हुई
ईश्वर के उपवन की कली-सी
मैं भूल गया खुद को
वर्षों बाद भी
ढूंढ रहा अपना अस्तित्व
पर जिधर देखता हूँ
सिर्फ तुम नजर आती हो
बगीचे की बेंच पर
छत की मुरेड पर
गौरैयों की चहचहाहट में
नीम की फुनगी पर
कोयल की कूक में
बस से उतरती
मोटर गाड़ी चलाती
पैदल चलती
भीड़ से निकलती
बच्चों से गले मिलती
ममता के रूप में
छोटे बच्चे की हँसी में
चाकलेट की छिना झपटी में
रूठी मुनियाँ में
सारी दुनिया में
तुम ही नजर आती हो
तुम्हीं हो
सिर्फ तुम्हीं
मेरा प्रथम प्यार
मेरे जीवन का आधार
होठों का गीत
शब्दों की कहानी
मन की भावना
मधुर कल्पना
मेरी सहचरी
मेरी कविता
परिणीता |
(स) हेमंत कुमार दूबे
तुम ही हो
सिर्फ तुम
जिधर भी देखता हूँ
जीवन में
संसार में
अपनी कल्पना में
पूजा में
अर्चना में
भावों की विवेचना में
तब से
जब से देखा है तुम्हें
सूदूर छोटे शहर के हरे मैदान में
विस्तृत नील गगन के नीचे
इठलाती तितली-सी
खिलखिलाती हुई
ईश्वर के उपवन की कली-सी
मैं भूल गया खुद को
वर्षों बाद भी
ढूंढ रहा अपना अस्तित्व
पर जिधर देखता हूँ
सिर्फ तुम नजर आती हो
बगीचे की बेंच पर
छत की मुरेड पर
गौरैयों की चहचहाहट में
नीम की फुनगी पर
कोयल की कूक में
बस से उतरती
मोटर गाड़ी चलाती
पैदल चलती
भीड़ से निकलती
बच्चों से गले मिलती
ममता के रूप में
छोटे बच्चे की हँसी में
चाकलेट की छिना झपटी में
रूठी मुनियाँ में
सारी दुनिया में
तुम ही नजर आती हो
तुम्हीं हो
सिर्फ तुम्हीं
मेरा प्रथम प्यार
मेरे जीवन का आधार
होठों का गीत
शब्दों की कहानी
मन की भावना
मधुर कल्पना
मेरी सहचरी
मेरी कविता
परिणीता |
(स) हेमंत कुमार दूबे
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