> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : तन-वीणा

शुक्रवार, 9 मई 2014

तन-वीणा



यह वीणा जो बज रही है वर्षों से
झेल चुकी है कई वार 
छूट कर गिरी थी
मजबूत हाथों से
जिन्होंने कसम खाई थी 
कभी गिरने नहीं देने की

तार इतनी बार कसे जा चुके हैं
टूटना चाहते हैं कभी भी
पर तुम कुछ मत सोचो
सुन लो जो धुन बज रही है
और खो जाओ
इसके सुरीले संसार में
मिल जाएगा तुम्हें सुकून
और धन्य हो जायेगा
इसका बजना
सार्थक हो जाएगा
इसका क्षणभंगुर जीवन|

(स) हेमंत कुमार दूबे

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