समय-समय की बात होती है,
कभी दिन कभी रात होती है
नज़ारा सब बदल जाता है
कभी धूप कभी छाँव होती है
शिशुपन, बचपन, किशोरपन
प्रौढपन देखते-देखते बीत जाता है
घड़ी की टिक-टिक चलती रहती है
बुढ़ापा आता है जिंदगी खाक होती है
जानते हैं सभी आये थे कहाँ से
भूले से पथ पर चलते रहते हैं
मंजिल का पता किसे मालूम नहीं
जानकार भी सभी अनजान रहते हैं
तेरा मेरा मिलना दो दिन का यहाँ
यह क़स्बा व सराय न तेरी न मेरी है
मिल कर गले कुछ पल जी ले 'हेमंत'
तकरार नहीं, जीवन में सिर्फ प्यार जरूरी है |
(स) हेमंत कुमार दूबे
बहुत सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट की चर्चा, शनिवार, दिनांक :- 22/03/2014 को "दर्द की बस्ती":चर्चा मंच:चर्चा अंक:1559 पर.
बहुत सुंदर हैं लेखन आपका , आदरणीय हेमंत भाई धन्यवाद व स्वागत हैं मेरे लिंक पे
जवाब देंहटाएंनवीन प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ अतिथि-यज्ञ ~ ) - { Inspiring stories part - 2 }
बीता प्रकाशन -: होली गीत - { रंगों का महत्व }