अबतक जो देखा सुना था
नाम रूप से बंधा हुआ था
मिलकर पंचतत्वों से सबकुछ
काया माया सब गुंथा हुआ था
संग किया जब सत् का मैंने
मेरी तेरी की सब मिटी भावना
यारी सारी मोहन से हो गई
है एक ही ईश्वर बनी दृढ धारणा
वह यह का भेद दूर हुआ
मुझको मिली हरि रस की प्याली
प्राण हुआ ईश्वर में प्रतिष्ठित
प्यारी है ज्ञान-ज्योत निराली उजियाली |
(c) हेमंत कुमार दूबे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें