> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : अद्वैत भावना

बुधवार, 4 सितंबर 2013

अद्वैत भावना



अबतक जो देखा सुना था
नाम रूप से बंधा हुआ था
मिलकर पंचतत्वों से  सबकुछ
काया माया सब गुंथा हुआ था

संग किया जब सत् का मैंने
मेरी तेरी की सब मिटी भावना
यारी सारी मोहन से हो गई
है एक ही ईश्वर बनी दृढ धारणा

वह यह का भेद दूर हुआ
मुझको मिली हरि रस की प्याली
प्राण हुआ ईश्वर में प्रतिष्ठित
प्यारी है ज्ञान-ज्योत निराली उजियाली |


(c) हेमंत कुमार दूबे

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