तुमको जो बिठाया मन-मंदिर में,
जलाया दीप वर्षों तक यादों का,
लौ में ख्वाहिशें सब खाक हो गयी हैं,
नहीं इन्तजार अब तुमसे मिलन का|
नैनों को जाने क्या हो गया है,
तुम्हारी मूरत दिखती है हरपल,
दूर नहीं पल भर के लिए भी,
मेरी रूह तुम्हारी रूह में है शामिल|
(c) हेमंत कुमार दुबे
wakai- adwitiya
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