> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : कविता

सोमवार, 19 सितंबर 2011

कविता


कविता बनती नहीं है
लबों पर आ जाती है,
कुछ पलों के लिए
मानस पर छा जाती है|

फूल पर मडराते हुए
भ्रमर की नादानी है
कभी खुशी, कभी गम
जिंदगी की कहानी है |

एक करिश्मा सी है,
खुदा की इनायत है,
कुछ तो सुकून मिले
दिल में अगर दर्द है|

हर चोट का मरहम
आंसूओं की कहानी है
कभी आँखों की चमक
कभी बहता पानी है|

इस गंगा में डुबकी
ईश्वर तक  है पहुंचाती,
टूटे स्वप्नों को जोडती
मुस्कान होठों पर लाती|


(c) हेमंत कुमार दुबे

2 टिप्‍पणियां:

  1. मेरा ऐसा मानना है की कोई कला सीखके , कोई भी कलाकार बन सकता है , लेकिन कवी पैदा होता है बनाया नहीं जा सकता |इसपर आपके विचार ?
    आपकी कविता अच्छी लगी |धन्यवाद |

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    उत्तर
    1. मानव के अन्दर असंख्य संभावनाएं छिपी हुई हैं | ईश्वर कृपा से वे ऊभर कर सामने आती हैं| ये भी सच है कि पूर्व जन्म के संस्कार और इस जन्म के माहौल इसमें महत्वपूर्ण योगदान देतें हैं |

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