> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : चुनावी दंगल

रविवार, 19 फ़रवरी 2012

चुनावी दंगल



दंगल देखने के लिए उत्सुक

नारे लगाती हुई जनता

जुटी है अपने-अपने मनसूबे से

मैदान के चारों तरफ |

पहलवान अपने तन पर

लज्जा को ढकने के लिए

पहने हैं सिर्फ लंगोट,

बाकी अंग वस्त्रविहीन |

ये नेताओं से अच्छे हैं,

जो खड़े चुनावी दंगल में,

फिरते सड़कों पर,

मोहल्ले की गलियों में,

उछालते कीचड विरोधियों पर,

उड़ाते धूल चार-पहियों से

जनता की आँखों में |

नेताओं के तन पर

सफ़ेद कपड़े होते हैं, पर

दिल से होते है नंगे,

काले, भेड़ियों जैसे|

अच्छा व्यक्ति भी संग इनके,

बनता है धूर्त भेड़िया,

औरों का हक खाने वाला,

पत्तल में छेद करने वाला|

नेता और उनके चमचे,

जब आ जाते हैं,

जनता बोलती नहीं,

सिर्फ सुनती है, और

देती है अपना निर्णय,

चुनावी दंगल में वोट ड़ालकर |



(c) हेमंत कुमार दुबे

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें