> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : तुम्हारे बचपन के दिन

सोमवार, 19 नवंबर 2012

तुम्हारे बचपन के दिन




याद आये पाली तुम्हारे बचपन के दिन
बेपरवाह जीवन के अनमोल सुनहरे क्षण
गुनगुनी धूप में खिलखिलाती उन्मुक्त हँसी
जिससे खिल उठता था घर आँगन उपवन

कभी अलमारी कभी परदे के पीछे से झांकती
चौंका देने वाली छुपन-छुपाई की धमाचौकड़ी
मूंगफली के दानों को नन्हे दांतों से तोड़ती
छोटे-छोटे बालसुलभ चेष्टाओं की अनोखी कड़ी

सर्दियों की धूप में चिड़ियों को दाने चुगाना
सुमधुर कंठ से कोई गीत गाना गुनगुनाना
पेन्सिल से कॉपी पर घर-नदी-पहाड़ बनाना
रंगों को भर घूम-घूम चित्र सबको दिखाना

अपनी फोटो खिचाने को दौड़ कर आ जाना
अंकिता, गोलू, छोटी, छोटे के संग मुस्कराना
अलबम में खुद को ढूंढ कर खुश हो जाना
गुदगुदा रहा तुम्हारे बचपन का याद आना |

© हेमंत कुमार दूबे

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