याद आये पाली तुम्हारे बचपन के दिन
बेपरवाह जीवन के अनमोल सुनहरे क्षण
गुनगुनी धूप में खिलखिलाती उन्मुक्त हँसी
जिससे खिल उठता था घर आँगन उपवन
कभी अलमारी कभी परदे के पीछे से झांकती
चौंका देने वाली छुपन-छुपाई की धमाचौकड़ी
मूंगफली के दानों को नन्हे दांतों से तोड़ती
छोटे-छोटे बालसुलभ चेष्टाओं की अनोखी कड़ी
सर्दियों की धूप में चिड़ियों को दाने चुगाना
सुमधुर कंठ से कोई गीत गाना गुनगुनाना
पेन्सिल से कॉपी पर घर-नदी-पहाड़ बनाना
रंगों को भर घूम-घूम चित्र सबको दिखाना
अपनी फोटो खिचाने को दौड़ कर आ जाना
अंकिता, गोलू, छोटी, छोटे के संग मुस्कराना
अलबम में खुद को ढूंढ कर खुश हो जाना
गुदगुदा रहा तुम्हारे बचपन का याद आना |
© हेमंत
कुमार दूबे
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