> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : गुरू बिन ज्ञान नहीं है जग में

शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

गुरू बिन ज्ञान नहीं है जग में




बचपन बीता, बीती जवानी
शरीर बुढ़ापा अब है आया
पोथी पढ़ी-पढ़ी जनम गवायाँ
ईश्वर का मर्म नहीं पाया

संगी-साथी काम न आवें
माता-पिता का खोया साया
पत्नी बच्चों में मगन हो रही
माया ने हर पल भरमाया

गुरू बिन ज्ञान नहीं है जग में
पोथी-पोथी लिखा है पाया
कहाँ मिलेंगे भव नाव खिवैया
जहाँ गया वहीं गया ठगाया

काशी, मथुरा, उज्जैन में ढूंढा
कुम्भ मेले में भी हो आया
हार के जब ईश्वर को पुकारा
गुरूदेव से उन्होंने तुरंत मिलाया |

(c) हेमंत कुमार दूबे

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