> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : मौन

बुधवार, 14 नवंबर 2012

मौन




वर्षों बाद मिलन
घड़ी भर का साथ
मन में शब्दों की चहलकदमी
बाहर भागती जिंदगी का शोर

निगाहें टिकी हुई
निहारती प्रीतम को
होंठ बंद
सांसों को पकड़ते
धडकनों को सुनते कर्ण
जड़वत तन

गहरा मौन
जिसमें शब्दों की चहलकदमी
द्रुतगति से सम्प्रेषण
जैसे बतियाती हुई चंद्र रश्मियाँ
दो पहाड़ियों के मध्य


मौन ने वह कह दिया
जो वर्षों से कहा न था
जोड़ दिए
दिल के तार
मिलन सम्पूर्ण हुआ
प्रेम से परिपूर्ण हुआ |

(c) हेमंत कुमार दूबे

6 टिप्‍पणियां:

  1. कभी कभी मौन में वो ताकत होती ही जो संवादों में नहीं होती बहुत अच्छा लिखा वाह बहुत बहुत बधाई पहली बार आई आपके ब्लॉग पर जुड़ गई हूँ इस श्रंखला से वक़्त मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी आना hindikavitayenaapkevichaar.blogspot.in

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  2. मौन भी सारी बाते कह देता है अगर दिल से सुने तो...
    बहुत सुन्दर कोमल भाव व्यक्त करती रचना..
    :-)

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  3. इस कविता को पसंद करने और अपनी टिप्पणी देने के लिए आप सभी का बहुत आभार! कृपया पुन: अवश्य पधारें !

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  4. मौन...अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है

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