गाँधी गए, सुभाष गए, बाल ठाकरे जी का भी हुआ प्रयाण |
अंत समय में सब धोखा देते हैं, तन, मन, बुद्धि और प्राण ||
युग पुरुषों को भी जाना पड़ता है, समझ ले रे नादान मन |
काम न आते निज तन के जन्मे, प्रिय प्राणेश्वरी व स्वजन||
संतावना देता कोई खड़ा, कंधे पर ले जाता कोई श्मसान |
महल-अटारी कुछ काम न आते, छूट जाता है सारा धन ||
राम नाम जो जीभ रखा, जिसने किया भजन-सुमिरन |
ऐसे मानुस ही तरते है, बाकि भटकते लख-चौरासी वन ||
(c) हेमंत कुमार दूबे
=> भारत की राजनीति का एक स्तंभ, बाल ठाकरे जी, आज पञ्च तत्व में विलीन हो गए | कभी मिला नहीं पर जानता हूँ बाल ठाकरे जी एक धार्मिक, कर्तव्य परायण व कर्मठ व्यक्ति थे | काव्य के द्वारा यह श्रद्धा-सुमन उन्हें सादर समर्पित है| ऊँ शांति ... शांति... शांति..
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 20/11/12 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है
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