> काव्य-धारा (Poetry Stream): जीवन, प्यार और आत्मा-झलक : नए युग का महासंग्राम - महाभारत

मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

नए युग का महासंग्राम - महाभारत


तुमने हमने मिलकर
उसे बनाया,
सीने से लगाया
पुचकारा, सहलाया,
और सुख लिया
उसके होने का |

बड़ा किया उसे
खिला-पिलाकर
खून-पसीने की
ईमानदारी की
कमाई से
सुखों की लालच में |

वह बढ़ता रहा
दिन दूनी रात चौगुनी,
चिपककर
चूसता रहा
जोंक की तरह
एक एक कतरा,
और अब रोके नहीं रूकता
विकराल रूप ले
राहू की तरह
ग्रसने लगा है
हमें,
समाज को |

गूँज रहा है नाम
हर जेहन में,
गलिओं में,
मोहल्लों में,
डरने लगा है
खौफ से,
भ्रष्टाचार के
नुकीले पंजों से,
विकराल दाढ़ों से,
आज का इंसान |

दबी आवाज में
विरोध करता रहा था
हर ईमानदार,
पर अब -
पांचजन्य फूंक दिया है
कृष्ण बनकर
अन्ना हजारे ने |

अर्जुन बने
बाबा रामदेव ने
बजा दिया है देवदत्त,
बज गए है शंख,
हेगड़े, किरण के,
बज गए हैं
ढोल-नगारे,
भ्रष्टाचार के विरुद्ध
प्रारंभ हो गया है -
नए युग का महासंग्राम, 
महाभारत |

(c) हेमंत कुमार दुबे

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